उत्तर प्रदेश के बिजनौर से आई यह खबर देशभर को झकझोर रही है। यह केवल एक प्रेम विवाह की कहानी नहीं, बल्कि घरेलू कलह, मानसिक तनाव, और सामाजिक दबाव की भयावह परिणति है। पांच साल तक चली मोहब्बत, ढाई साल का वैवाहिक जीवन और अंत में पति-पत्नी और उनके मासूम बेटे की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
प्रेम विवाह की शुरुआत: मोहब्बत का वादा
राहुल, जो बीएसएफ जवान थे, और मनीषा, दोनों की मुलाकात साल 2018 में हुई थी। पांच साल के रिश्ते में मोहब्बत, वादे और सपनों की एक लंबी कहानी थी। 2023 में परिवारों की सहमति से दोनों का प्रेम विवाह हुआ। शादी के बाद शुरुआती समय सुखद बीता, लेकिन धीरे-धीरे रिश्तों में मनमुटाव बढ़ने लगा।
ढाई साल में टूटा रिश्ता: घरेलू कलह और तनाव
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मनीषा और राहुल के बीच घरेलू विवाद बढ़ने लगे। आरोप है कि मनीषा को ससुराल पक्ष से दहेज प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा था। वहीं राहुल का कहना था कि वह नौकरी के तनाव और पारिवारिक कलह के बीच फंस गया था। यह मानसिक स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति का संकेत था।
पहली छलांग: मनीषा ने गंगा को चुना
19 अगस्त 2025 को बिजनौर बैराज से मनीषा ने गंगा में छलांग लगा दी। गंगा में आत्महत्या की यह घटना सीसीटीवी फुटेज में कैद हुई। मौके पर उसकी चप्पलें मिलीं, लेकिन कई दिनों तक उसका शव बरामद नहीं हुआ। यह घटना राहुल को भीतर से तोड़ गई।
दूसरी छलांग: राहुल और मासूम बेटे की मौत
23 अगस्त को, अपनी पत्नी की मौत से सदमे में डूबे बीएसएफ जवान राहुल ने अपने डेढ़ साल के बेटे को सीने से लगाकर उसी बैराज से गंगा में छलांग लगा दी। लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। गोताखोरों की मदद से खोजबीन शुरू हुई, लेकिन शाम तक कोई सफलता नहीं मिली।
क्यों हुआ ऐसा? सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
- सामाजिक दबाव: प्रेम विवाह होने के बावजूद परिवार का पूर्ण समर्थन नहीं मिलना।
- मानसिक तनाव: रिश्तों में लगातार बढ़ते तनाव और नौकरी का दबाव।
- सहयोग तंत्र की कमी: मानसिक स्वास्थ्य सहायता, पारिवारिक काउंसलिंग का अभाव।
समाज के लिए सबक
यह घटना हमें सिखाती है कि मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना कितना जरूरी है। पारिवारिक संवाद और सामाजिक संवेदनशीलता ऐसे हादसों को रोक सकती है।
निष्कर्ष
बिजनौर की यह त्रासदी केवल एक प्रेम कहानी का अंत नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है। हमें रिश्तों को संभालने, मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर बात करने की जरूरत है। तभी हम ऐसी कहानियों को दोहराने से रोक पाएंगे।
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